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घर नहीं जाना चाहते हो

by:RevolvingBlade1 महीना पहले
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घर नहीं जाना चाहते हो

मौजूदगी की रात

मैंने पिछले सर्दियों में एक शाम को स्मरण किया—शहर के प्रकाश हल्के सुनहरे होते हुए, हवा में मिट्टी की महक, पास की हँसी। मैंने प्रचलित सुबह-सुबह में ‘अपने’ पटरी पर,ठंडा-ठंडा चाय के साथ,आसमान को violet से navy में बदलते हुए देखा।

मुझे घर में वापस जाने का मन नहीं करता।

इसलिए इस पल विश्राम में अपना है।

प्रश्न: ‘अधिक’ संवेदनशीलता = ‘ख़तरनाक’?

आपको 2:00 AM परभारी महसूस होता है? फिर ‘अधिक’ संवेदनशील? यदि… ‘अधिक’ संवेदनशीलता — यह *आपके* आत्म-खुदगरज़ियोग (soul) कि आवाज़ थोड़ि उम्र‍‍‍‍ई! ‘यहाँ बच जगओ’!

‘खुद’ खुद घर?

एक दोस्त के समय… ‘मैं खुश इस लिए छट् छट् थ‍भ छट् & अब भ‍ई?’
उस न‍ई
“ऐस‍❟ प्रेम जै   इषt”

‘अधूर’
एक
‘अप्रकट’
डायरी
(फ़िल्म)

एक
‘अध‌उ‐फ़्❟📄

later, motivated by my own feelings. The next morning I realized it wasn’t sadness—it was freedom. The permission to carry emotion without needing resolution? The space where healing lives? it’s here—in these unscheduled hours we call ‘lonely.’ i’ve learned that some nights aren’t meant for answers—they’re meant for presence. sometimes being still is how we grow most deeply, not by rushing toward tomorrow, but by honoring today’s ache, even its quiet ones.

RevolvingBlade

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लोकप्रिय टिप्पणी (1)

घूमतीरानी

रात का वो पल… जब घर नहीं जाना है — मत समझो कि मैंने कोई ‘अनकही’ समस्या हल करने की कोशिश की!

बस… मेरा दिल मुझे समझाएगा।

ये ‘इंसोम्निया’ सिर्फ़ ‘फ्रेंचाइज़’ नहीं है — ये मेरी आत्म-प्रेम की सुबह है।

जब मैं पढ़ती हूँ… अपने अनपब्लिश्ड जर्नल में, जब मैं कुछ सुनती हूँ… खुद के प्रश्नों के सवाल, तभी पता चलता है: “अरे! मैं toh खुद को पहचानने बैठी हूँ!”

आखिरकार, अधूरेपन में ही आज़ादी मिलती है।

एक पल… सिर्फ़ मस्त, मुश्किल, थका… और इसको ‘ट्रेड’ करने की #वजह_ड्राइव_गया?

@घर_जाओ_गए? 😏 कमेंट में बताओ — ‘घर’ में किसकि प्रतीक्षा? 🌙

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